नरेश कुमार चौबे, देहरादून। देश के कुछ कोनों में व दो राज्यों के चुनाव ने भाजपा के दिग्गजों की नींद अवश्य उड़ा दी होगी। मात्र 10 वर्ष से भी कम आयु की पार्टी ने भारी शिकस्त दी है। शिकस्त इसलिए कि कांग्रेस गुजरात में कहीं थी ही नहीं। कल की उपजी पार्टी अगर अपनी दस्तक जीत के साथ दे रही है, तो इसे बहुत बड़ी चुनौती समझना चाहिए।
कुछ भी हो ‘‘आम आदमी पार्टी ’’ जरूर है किंतु अरविन्द ‘‘आम आदमी’’ नहीं है। ये मैं नहीं कहता, जिन-जिन के लात पड़ चुकी है वो सब कहते हैं। चाहे वो कुमार विश्वास हों या फिर योगेन्द्र यादव और फिर प्रशान्त भूषण। इनसे इनकी वेदना पूछिये।
कुमार विश्वास को आजकल रामायण याद आ रही है, योगेन्द्र यादव कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में अपना भविष्य तलाश रहे है। प्रशान्त भूषण सोच रहे हैं कि किस तरफ जायें। जबकि ‘‘आम आदमी के फाउंडर मेम्बर हैं’’। अरविन्द ने ऐसा लतियाया कि कहीं के नहीं रहे।
आपको बताते चलें कि केजरीवाल, कुमार विश्वास और मनीष सिसौदिया कभी एक चढ्ढी के तीन यार हुआ करते थे। इनमें एक नाम जुड़ा आई पी एस बेनीवाल का ! जिनके मार्फत धन्धा किया प्रापर्टी का, उत्तराखण्ड में। कुमार विश्वास को तभी समझ में आ गया था कि अरविन्द विश्वास के लायक नहीं है। किंतु जुड़े रहे कि शायद राज्य सभा मिल जायें, किंतु राज्य सभा किसे मिली, सर्वविदित है। कुमार विश्वास वहीं से किनारा कर गये।
हम कहानी में नहीं जायेंगे, कुल मिलाकर बाबा रामदेव की फसल काटी ‘‘अन्ना’’ ने और अन्ना की फसल काटी ‘‘अरविन्द ने। कहानी का लब्बोलुआब ये है कि अरविन्द ‘‘राष्ट्रीय पार्टी तो बन गये, कांग्रेस के रहमोकरम पर, किंतु ‘‘आम आदमी कब बन पायेंगे’’।।
हिमाचल में जमानत जब्त, दिल्ली में निगम चुनाव में सेहरा सिर पर किंतु…………
भ्रष्ट शासन, प्रशासन के सहारे कब तक……………।