लम्बा सफर, नई दिल्ली, 22 जनवरी।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग और साहित्य अकादमी, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘साहित्यिक अनुवाद: सिद्धांत और व्यवहार’ विषय पर एक दिवसीय गोष्टी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने अनुवाद को एक विशिष्ट विधा मानने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हर अनुवाद किसी न किसी विचारधारा से प्रेरित होता है। गोष्टी के दौरान विशिष्ट अतिथि के रूप में पहुंचे दिल्ली विश्वविद्यालय के एम.आई.एल. विभाग के प्रोफेसर रवि प्रकाश टेकचंदानी ने कहा कि अनुवाद और अन्य विषयों में सिद्धांत से अभ्यास की बजाय अभ्यास से सिद्धांत की ओर बढ़ना चाहिए।
इस अवसर पर डीयू पंजाबी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. रवि रवींद्र ने कार्यक्रम में पधारे विद्वानों का विधिवत स्वागत किया। उन्होने अनुवाद के महत्व की बात करते हुए राज्य, धर्म, व्यापार और ज्ञान शक्ति के साथ अनुवाद के संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अनुवाद का यदि कोई सबसे बड़ा शत्रु है तो वह कट्टरता है, चाहे वह कट्टरता धर्म की हो, दर्शन की हो या विचारधारा की हो। अनुवाद का सबसे सीधा अर्थ है दूसरे को समझना या समझने की इच्छा व्यक्त करना। जो क़ौमें, राष्ट्र और जो लोग केवल अपने स्वयं के ज्ञान तक सीमित रहते हैं, उनका दायरा सीमित होता है।
प्रसिद्ध पंजाबी कवि और समीक्षक डॉ. वनिता ने उद्घाटन भाषण देते हुए अनुवाद की मूल शर्तों पर चर्चा की। उन्होंने प्रत्येक भाषा की अनूठी वाक्य संरचना की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अनुवाद के लिए अपनी भाषा में प्रवीणता के साथ-साथ ज्ञान के अन्य विषयों की समझ होना भी अति आवश्यक है। इस अवसर पर प्रसिद्ध आलोचक और अनुवादक राणा नायर ने अपने मुख्य भाषण के दौरान अनुवाद को एक सतत प्रक्रिया कहा। प्रसिद्ध पंजाबी लेखक और आलोचक डॉ. मनमोहन ने अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुवाद को समझने के लिए अनुवाद के उद्देश्य को समझना आवश्यक है।
इस अवसर पर साहित्य अकादमी के हिन्दी के संपादक अनुपम तिवारी ने सभी विद्वानों का आभार व्यक्त किया। इसके साथ ही उन्होंने अकादमी की कार्यशैली और अपने अनुभव को भी सांझा किया। कार्यक्रम के दौरान विभागाध्यक्ष प्रो. रवि रविंदर, प्रो. जसपाल कौर, प्रो. कुलवीर गोजरा, डॉ. बलजिंदर नसराली, डॉ. रजनी बाला, डॉ. नछतर सिंह, डॉ. यादविंदर सिंह और डॉ. रंजू बाला सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों से अनेकों शिक्षक व विभाग के शोधार्थी और छात्र-छात्राएं भी उपस्थित रहे।