रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 से चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) को बड़ा झटका लगा है। पूर्व भाजपा विधायकों ने सत्ताधारी दल- झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का दामन थाम लिया है। जिसमे लुईस मरांडी और कुणाल सारंगी सहित करीब आधा दर्जन दिग्गज बीजेपी नेताओं ने झामुमो पार्टी में शामिल हो गए हैं।
पूर्व में भी भाजपा के नेताओं ने झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का दामन थम चुके है। विगत दिनों ही तीन बार के भाजपा विधायक केदार हाजरा और आजसू पार्टी के उमाकांत रजक के झामुमो में शामिल हुए थे। और आज भाजपा के पूर्व प्रवक्ता और बहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल सारंगी ने कहा, ‘हम आज झामुमो में शामिल हो गए।’
लुईस मरांडी को बीजेपी ने हेमंत सोरेन की बरेहट सीट से चुनाव लड़ने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने जेएमएम का दामन थाम लिया। लुईस मरांडी दुमका सीट से चुनाव लड़ना चाहती थीं। यहां से बीजेपी ने सुनील सोरेन को मैदान में उतारा है।
इन नेताओं ने जेएमएम का दामन थामा
लुईस मरांडी के अलावा सरायकेला से बीजेपी के पूर्व उम्मीदवार गणेश महली, बहरगोड़ा से पूर्व उम्मीदवार कुणाल सारंगी, बास्को बेहरा, बारी मुर्मू और लक्ष्मण टुडू का नाम प्रमुख हैं। सारठ के पूर्व विधायक चुन्ना सिंह के भी पार्टी में शामिल होने की खबर है। क्योंकि चुन्ना सिंह टिकट न मिलने से नाराज चल रहे हैं।
भाजपा के उदासीन दृष्टिकोण से निराशा
षांडगी ने भाजपा की झारखंड इकाई के प्रवक्ता के पद से हटने के करीब डेढ़ महीने बाद जुलाई में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने पूर्वी सिंहभूम जिले में विभिन्न संगठनात्मक और जन-उन्मुख मुद्दों का हवाला देते हुए भाजपा झारखंड इकाई के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को अपना इस्तीफा भेजा था। उन्होंने महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने के अपने प्रयासों के बावजूद पार्टी नेतृत्व के ‘उदासीन दृष्टिकोण’ पर भी निराशा व्यक्त की थी।
बगावत को दिया गया “ऑपरेशन हेमंत” का नाम
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी नेताओं को झारखंड मुक्ति मोर्चा में शामिल कराने की इस पूरी कवायद को ऑपरेशन हेमंत नाम दिया गया है। जेएमएम इस चुनाव में “हेमंत दुबारा” के नारे पर आगे बढ़ रही है।
वहीं, कोल्हान में चंपई सोरेन के खिलाफ हेमंत सोरेन ने गणेश महली और बास्को बेरा को साधा है। कुणाल षाडंगी और बारी मुर्मू भी कोल्हान की है। बारी जमशेदपुर की जिला परिषद की अध्यक्ष हैं। इसी तरह सीता सोरेन के जाने से संथाल में जो महिला नेता का खालीपन बना था, उसे लुईस मरांडी के जरिए भरने की कोशिश की गई है।