देश के रेसलर दिल्ली के जंतर-मंतर पर लगातार धरना दे रहे हैं, और सरकार सो रही है, क्या ऐसा है ? नहीं बिल्कुल नहीं सरकार सो नहीं रही है , मंथन कर रही है। देश में खासतौर से दिल्ली में तीसरी बार केन्द्र सरकार को घेरने की नाकामयाब कोशिश की जा रही है, ऐसा कहना है भाजपा समर्थकों का ! विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया तो एक मोहरा है, इसके पीछे कौन कौन लोग सामने आ रहे हैं, ये आने वाला समय बतायेगा। कुछ आ गये और कुछ आने बाकी हैं।
ये वो चेहरे हैं जो स्वंय तो कुछ कर नहीं सकते, अगर कोई कुछ करना चाहे तो उसकी टांग अवश्य खींचते हैं। केन्द्र ने जांच समिति बनाई, जांच समिति को सिरे से नकार दिया गया। ब्रजभूषण सिंह पर प्राथमिकी दर्ज हुई, वो काफी नहीं है, आखिर चाहिए क्या ? एक ही मांग, ब्रजभूषण को जेल भेजो । वास्तव में मांग जायज है ! एक आम आदमी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होते ही सलाखों के पीछे भेज दिया जाता है, तब इतने गंभीर आरोप जिसमें पोस्को भी शामिल है तो ब्रजभूषण जैसा दरिंदा क्यों खुलेआम घूम रहा है। ये मैं नहीं कह रहा, ये पुलिसिया थ्योरी कह रही है, देश की जनता कह रही है।
वास्तव में नियम तो यही है कि जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज हो, किंतु होता यही है कि शिकायत दर्ज हुई, प्राथमिकी दर्ज की और भेज दिया सलाखों के पीछे। सलाखों के पीछे भेजने के बाद कथित जांच का नाटक शुरू होता है। अगर प्रतिवादी दमदार है, रसूख वाला है तब बच जाता है अन्यथा चार्जशीट दाखिल होने तक जमानत का अंदेशा भी नहीं होता। यहां तो दमदार ही नहीं, रसूखदार और सांसद ब्रजभूषण सिंह है, फिर गिरफ्तारी क्यों और कैसे ?
मजेदार तथ्य है कि जो भी व्यक्ति या संगठन इस धरने का समर्थन करने जाता है, उसे टूल किट का नाम दे दिया जाता है, अब आगे किसान यूनियन भी इन पहलवानों के समर्थन में आने वाली है, हो सकता है ये धरना किसान आंदोलन, सी.ए.ए. विरोध आन्दोलन की तरह एक व्यापक रूप ले ले। क्योंकि धीरे-धीरे संपूर्ण विपक्ष जिसे कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था, उसे बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया है।
ब्रजभूषण की बात भी सही है कि पिछले दस वर्षों में ये पहलवाल कहां थे, आज क्यों मुखर हो रहे हैं, तब ब्रजभूषण सिंह को याद रखना चाहिए कि ‘‘मी टू’’ पर भी ऐसा ही हुआ था, जिसमें बड़ी-बड़ी मछलियां फंसी थी। हो सकता है ऐसा कुछ हुआ हो, और अचानक ही ‘‘मी टू’’ की तरह विनेश फोगाट की आत्मा जाग गई हो। और जब ब्रजभूषण सिंह ने कुछ किया ही नही ंतो उन्हें डर कैसा ?
जेल जाने में डर कैसा ? कानून अपना काम कर रहा है और करेगा । ये बात अलग है कि कानून केवल किताबों में है वहां किसे न्याय मिलेगा और कब……………?
मेरा तो यही मानना है कि देश के लिए लड़िये अपने लिये नहीं । कानून को कुछ लोगों का गुलाम मत बनाईये, सवा खरब की आबादी वाला देश अभी भी बड़ी उम्मीद से इस चौखट से न्याय की उम्मीद लगाता है।