हमारा ज्ञान हमारे त्योहार खान पान शिष्टाचार संस्कार मिठाई ही नहीं हमारे भोजन भी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं
एकलव्य ! संवेदना बटोरने के लिए हम आखिर कब तक पाश्चात्य संस्कृति मुगलों और अंग्रेजों को दोष देते रहेंगे। हम तो 75 साल से आजाद हैं। नेतृत्व को भी दोष देना कहां तक उचित है चुनाव तो हमने किया है ना। पहली बार चुनाव में व्यक्ति विशेष को महान समझ कर हमने वोटिंग की धाँधली को स्वीकार कीया। जब विदेशियों से लड़ने वाले सुभाष चंद्र बोस भगत सिंह राजगुरु जैसे लोग अंग्रेजों के सामने भी विकराल रूप से खड़े थे उसके बाद तो भारत आजाद हो गया। आजादी के बाद हमारा पौरुष क्यों शांत हो गया। हमने क्यों विदेशी मानसिकता से ग्रसित नेतृत्व को स्वीकार किया । मुगल और अंग्रेज हमारे नहीं थे, सुसंस्कृत नहीं थे। उन्हें हम ज्यादा दोष नहीं दे सकते। वे आक्रांता, लुटेरे थे। डाकू लुटेरे आक्रांता ऐसे ही होते हैं। हमारे करोडों भाई जबरन तलवार की नोक पर कन्वर्ट कर लिए गए, कुछ ने प्राण दे दिए धर्म नहीं छोड़ा अधर्म नहीं अपनाया।आजादी के बाद हमने उन्हें वापस लाने का प्रयास क्यों नहीं किया। वोट बैंक के लिए हमने उन्हें विकृत मानसिकता के साथ क्यों पनपने दिया। यह गलतियां हमारी है हमने अपनी श्रेष्ठ शिक्षा संस्कृति ज्ञान वेशभूषा रीति रिवाज, भाषा सभ्यता, शिक्षा पद्धति, मिठाइयां और स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक भोजन काे आधुनिक समय के अनुसार विकसित नहीं किया बहुत ही पुराने ढर्रो में चल रही है। कुछ एक दुकान बड़ी अच्छी चल रही है जैसे हल्दीराम, तिवारी ब्रदर्स है इस तरह की दुकान और थोड़ा मॉडर्न होने की बहुत जरूरत है… जब पैकिंग में पब्लिसिटी का जमाना है तो उसका भी उपयोग किया जाना चाहिए.. हमारा ज्ञान हमारे त्योहार खान पान शिष्टाचार संस्कार मिठाई ही नहीं हमारे भोजन भी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ हैं लेकिन लोग बेवकूफों की तरह पिज़्ज़ा बर्गर चॉकलेट में अटके हुए हैं क्योंकि उनकी दुकाने बहुत सुंदर और अत्याधुनिक है। और हम भी पाश्चात्य सभ्यता के गुलाम है। हमने भी आजादी के पश्चात् अपनी सभ्यता भोजन और वेशभूषा को आधुनिकतम विकसित किया होता तो आज विश्व में हम अनुकरणीय होते .. जब तक हम अंग्रेज और मुगलों को अपने मानसिकता से बाहर नहीं फेंक देंगे हमारा कोई विकास नहीं होने वाला… पहले मुगलों की हिंसा और कामवासना प्रधान मानसिक विकृतियों ने हमें सेक्स slave गुलाम बना दिया, हर व्यक्ति सेक्सी और अट्रैक्टिव बनना चाहता है शूरवीर और पराक्रमी नहीं। और फिर अंग्रेजों ने हमें सोफिस्टिकेटेड नौकर बना दिया। सूटेड बूटेड पोशाके और अच्छी टेबल चेयर में हमें अंग्रेजी भाषा के साथ में मानसिक रूप से नौकर बना दिया। ज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र से बाहर निकालकर हमें रोज़गार के लिए किसी के गुलाम बनने की प्रशिक्षण मैं माहिर किया। और उनके द्वारा पेश की गई भरपूर तनख्वाह ने हमें गुलाम बना दिया अपने व्यक्तिगत जीवन परिवार त्यौहार और समाज के लिए हमारे पास समय नहीं होता और हम भिखारी की तरह आज भी नौकरियों की तलाश कर रहे हैं .. हमारी संस्कृति उत्तरोत्तर विकास करके राजा बनने की है, बेवकूफों की तरह नौकर बनने की ख्वाहिश कोई नहीं करता था… कहां गई हमारी सभ्यता कहां गई हमारी संस्कृति….
हमें काफी लंबा सफर तय करना है चलना तो होगा रुकने से काम नहीं चलेगा। हमें ही सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, महाराणा प्रताप, लक्ष्मी बाई वीरांगना बनना होगा।
लंबा सफर है लंबी दूरी है तय करने में वक्त तो लगता है।