आओ पेड़ लगाएं, पेड़ लगाएं, खेलें खेल, फोटो खिंचाएं, सोशल मीडिया पर शेयर करें, और हो गई इतिश्री ?


नरेश कुमार चौबे, । आज देश में पर्यावरण दिवस जोर-शोर से उत्सव के रूप मे मनाया जा रहा है। खरबों रूपये के पेड़ों की खरीद फरोख्त की गई और की जा रही है। अकेले उत्तराखण्ड राज्य में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड राज्य में एक करोड़ वृक्षों का रोपण करने का लक्ष्य रखा। शासन प्रशासन वृक्षारोपण में इस प्रकार जुटा हुआ है, मानों इस वर्ष काटे हुए जंगलों की भरपाई हम इस वर्ष ही कर लेंगे। ग्राम इकाई से लेकर ऊपरी इकाई तक केवल और केवल एक ही लक्ष्य वृक्षारोपण का फोटो अच्छे से अच्छा कैसे सोशल मीडिया में छा जाए। वृक्षारोपण करते समय सोशल मीडिया पर कितने लाईक मिलें। गांव-गांव में सरकारी अमलों द्वारा बड़ी मात्रा में सरकारी गैर सरकारी नर्सरियों द्वारा बड़ी मात्रा में वृक्ष खरीदे गये, किन्तु कितने वृक्ष रोपित किये गये, इसका कोई हिसाब नहीं है। रोपण के बाद कितने प्रतिशत जिन्दा बचे, इसका भी हिसाब नहीं है।
वास्तव में साल में केवल एक सप्ताह हम हरेला मनाने के नाम पर सरकारी मशीनरियों का दुरूपयोग कर रहे हैं। वर्षा ऋतु प्रतिवर्ष आती है। हम प्रतिवर्ष कितने जंगल काट रहे हैं, और कितने प्रतिशत वृक्षों का संरक्षण कर रहे हैं। कहीं विकास के नाम पर तो कहीं अपनी सहूलियतों के हिसाब से 50-50 साल पुराने वृक्षों को धराशाई कर रहे हैं, और फिर जलवायु परिवर्तन का रोना रोते हैं। हमारे तथा कथित पर्यावरण विशेषज्ञ ए.सी कमरों में बैठकर बदलते मौसम का रोना रोते हैं। जनता को मीडिया के माध्यम से संदेश देते है, कि अधिक से अधिक वृक्ष लगाओ। किन्तु यक्ष प्रश्न यही है कि कभी ये नहीं कहा जाता कि जो वृक्ष हैं उन्हें संरक्षित करें। हालांकि वृक्षों के कटान पर वन अधिनियम कानून है। लेकिन क्या वास्तव में वन विभाग द्वारा कानून का पालन किया जाता है।

एक पौधे को वृक्ष बनने में कम से कम 20 वर्ष लगते हैं, जबकि हम वृक्षारोपण करने के बाद उस ओर देखते ही नहीं हैं कि हमारा लगाया हुआ पौधा कितने समय तक जीवित रहता है। जिस अनुपात में वृक्षारोपण का बजट इस्तेमाल किया जाता है, अगर उसका 10 प्रतिशत भी जिन्दा रहे तो काफी हद तक हम अपने जंगल बचा सकते हैं। प्रतिवर्ष जंगलों में लगती आग, आंधी, तेज बरसात के कारण गिरते वृक्षों के अनुपात में भी हम वृक्षारोपण कर उन्हें संरक्षित नहीं कर पाते। वृक्षारोपण कर पुरस्कार पाने की होड़ तक ही सीमित रहते है। हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के भविष्य की चिंता नहीं है। हम ग्लोबल वार्मिंग के नाम पर बहस तो करते हैं। किंतु सही तथ्यों को जानते हुए भी अनदेखा करते है।

वास्तव में पार्यावरण दिवस का महत्व तभी सार्थक होगा, जब देश का प्रत्येक बच्चा-बच्चा पर्यावरण की चिंता करने लगेगा। जिस प्रकार हम अपनी और अपने परिवार की चिंता करते हैं, उसी प्रकार हमें प्रकृति की भी चिंता करनी होगी। वृक्षों को संरक्षित रखने की जिम्मेदारी केवल और केवल सरकारी अमले की नहीं है, हमारी भी जिम्मेदारी है, आवश्यकता है। ये बात देश के प्रत्येक नागरिक को समझ आनी चाहिए। अगर देश का प्रत्येक नागरिक ये ठान ले कि हम प्रतिवर्ष 5 वृक्षों को संरक्षित करेंगे, तब आने वाले कुछ ही वर्षों में हम बदलते मौसम की तस्वीर कुछ और ही देखेंगे। तभी हरेला का महत्व सार्थक होगा।

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