जिला प्रशासन की ढुल-मुल नीतियों के चलते भू-माफियाओं के हौंसले बुलन्द

वादी ने लगाया कथित भूमाफिया प्रताप चौधरी और जिले के अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप

क्या वजह है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों को ताक पर रखकर हो रहा है अवैध निर्माण
कानूनगो मि. गुप्ता को उच्च न्यायालय के आदेश लगते हैं फर्जी ?
2005 से वादी न्याय के लिए खट-खटा चुका है प्रधानमंत्री कार्यालय के भी द्वार, किंतु 18 वर्ष पश्चात भी न्याय से कोसों दूर…..


वरिष्ठ संवाददाता लम्बा सफर, देहरादून/उत्तराखण्ड। जहां उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और मुख्य सचिव भूमाफियाओं पर नकेल कसते हुए दिखाई देते हैं, वहीं उनके मातहत जिले के अधिकारी उनके ही नहीं माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की भी खुलकर धज्जियां उड़ा रहे हैं।
पेश मामले के अनुसार उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के सहसपुर ब्लाक के गल्जवाड़ी ग्राम सभा के गद्दूवाला में कथित प्रताप चौधरी ने 2004 नवम्बर, सितम्बर में तकरीबन 90 बीधा जमीन कुछ लोगों से खरीदी थी। जिसमें 19 बीघा जमीन विशम्बर सिंह आदि से खरीदी गई थी। जनवरी 2005 में विशम्बर के अन्य भाईयों शमशेर सिंह व अन्य ने इस सौदे पर एतराज जताते हुए एस.डी.एम सदर के यहां वाद दायर किया। 30 नवम्बर 2005 को वादी को एस़.डी.एम कोर्ट से स्थगन आदेश दे दिया गया।
16 मार्च 2007 को पुनः न्यायालय सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी/परगना मजिस्टेªट देहरादून द्वारा स्थगन आदेश यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि प्रतिवादी द्वारा आश्वस्त किया गया है कि उक्त भूमि पर कोई हानि/अतिक्रमण नहीं किया जायेगा। यदि हानि/अतिक्रमण के संबंध में कोई शिकायत प्राप्त होती है तब यह आदेश स्वतः ही समाप्त समझा जायेगा।

गौरतलब है कि शब्दों के इस मायाजाल में वादी को किस तरह उलझाया कि स्थगन हटा भी दिया गया और नहीं भी ।
इस आदेश को देखने मात्र से ही लगता है कि आदेशों की आड़ में जहां वादी को भरमाया गया है, वहीं प्रतिवादी को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया है। या फिर यों कहें कि स्थगन आदेश कभी हटाया ही नहीं गया।

आपको बताते चलें कि 2009 में कथित भूमाफिया द्वारा वादी पर जबरदस्ती कब्जा करने व परेशान करने का फर्जी आरोप लगाकर तृतीय अपर सिविल जज की अदालत में वाद दायर किया गया। दिनांक 01 अप्रैल 2011 को माननीय न्यायाधीश ने वादी के उपस्थित ना होने के कारण वाद खारिज कर दिया।

गौरतलब है कि वादी दिनेश कुमार कोर्ट में तो न्याय के लिए बराबर गुहार लगा रहे हैं, किंतु लगातार जिलाधिकारी,एस.डी.एम, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, मुख्य सचिव उत्तराखण्ड सरकार के अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय भी गुहार लगा चुके हैैं। किंतु अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है।

ऐसा नहीं है कि ईमानदार जिलाधिकारी ने पिछले दो वर्षों में जांच के आदेश न किये हों । जांच के लिए एम.डी.डी.ए अधिकारी, तहसीलदार, कानूनगो आदि अधिकारी आते तो हैं किंतु उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये स्थगन आदेश पर ही सवाल ख़ड़ा कर देते हैं।

ध्यान देने योग्य तथ्य है कि 04 जुलाई 2019 को माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट आदेश दिया गया था कि जब तक इस वाद का निबटारा नहीं हो जाता तक तक स्थगन आदेश जारी रहेगा। किंतु हमारे जिले के राजस्व अधिकारियों का या तो आंग्ल भाषा में हुए आदेश को पढ़ना नहीं आता या फिर जानबूझकर अनजान बना रहा है।

जांच के जो आवश्यक तथ्य हैं कि जांच टीम उक्त भूमि की नपाई क्यों नहीं करती। जबकि एम.डी.डी.ए के अधिकारी नजीर अहमद ने नक्शा देखकर कहा था कि उक्त भूमि में 12.5 बीघा जमीन सीलिंग की है, साथ ही बरसाती नाले दोनों ओर हैं जिन्हें आप बन्द नहीं कर सकते। जिस पर उक्त भूमि के मालिक ने आश्वस्त किया था कि नक्शे के अनुसार ही काम किया जायेगा। किंतु स्थगन आदेश के बावजूद नक्शे पूरी भूमि के पास कर दिये जाते हैं। सभी सरकारी दस्तावेजों में नाम दर्ज कर दिये जाते हैं।

आपको बताते चलें कि उत्तराखण्ड शासन में तैनात कुछ अधिकारी बाहरी लोगों को चन्द पैसों के लालच में लाभ पहुंचा रहे है। क्या ईमानदार मुख्य सचिव और हमारे सूबे के मुख्यमंत्री इस पर संज्ञान लेंगे।

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