डॉ. नरेश कुमार चौबे (वरिष्ठ पत्रकार)। देहरादून। जैसा कि चर्चाओं में है कि पौड़ी के पूर्व विधायक यशपाल बेनाम की बेटी का निकाह एक मुस्लिम युवक से हो रहा है। जो कि उत्तर प्रदेश के अमेठी के आस-पास के किसी गांव का रहने वाला है। काबिलेगौर है कि देवभूमि में मलेच्छ आज यहां तक हिम्मत कर बैठे कि एक राजपूत परिवार से रिश्ता कर बैठे। राजपूत परिवार भी वो जो कभी तलवार और सलवार के जोर से नहीं झुका। पहाड़ की कंदराओं में शरण लेना बेहतर समझा। फिर क्या वजह रही कि एक मलेच्छ परिवार से नाता जोड़ने में अपने आपको खुशनसीब समझ रहा है।
ज्हां एक तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री देवभूमि में सरकारी जमीनों पर बनी अवैध रूप से बनी मजारों को लेकर गंभीर हैं वहीं हमारी बहिन बेटियां एक नया इतिहास रच रही है। क्या ये सही है ? हम बात करते हैं पर्वतीय क्षेत्र मे मैदानी क्षेत्रों के व्यक्तियों द्वारा भू सौदों को लेकर। किन्तु हमारी दृष्टि कभी इस ओर भी गई है कि शनैःशनै देवभूमि मलेच्छों द्वारा अतिक्रमित की जा रही है। हरिद्वार, रिषिकेश, थराली, रूद्रप्रयाग, ग्वालदम, उत्तरकाशी, केदारनाथ और पवित्र बद्रीनाथ में भी मलेच्छों के नमाजीकरण को हम नहीं रोक पा रहे हैं।
उत्तराखण्ड के प्रवेशद्वार मंगलौर, रूड़की, लकसर, सुल्तानपुर, कोटद्वार, जसपुर, काशीपुर, उधामसिंह नगर, बाजपुर, हल्द्वानी की तो हम बात ही न करें। क्योंकि ये क्षेत्र धीरे-धीरे मुस्लिम बाहुल्य बनते जा रहे हैं। वो दिन दूर नहीं जब उत्तराखण्ड में भी मलेच्छ बहुसंख्यक हो जायेंगे। गंभीर चिंतन का विषय है। हमें राजनीति से ऊपर उठकर इस विषय में सोचना होगा।
हो सकता है यशपाल बेनाम उदार दिल हों किंतु राजपूतों के इतिहास को भूलने की कौशिश ना करें, अन्यथा एक बार फिर राजपूताना इतिहास को स्मरण कर लेंख् और अपने पूर्वजों से पूछ लें कि किन हालातों में पहाड़ी कंदराओं में छिपने आये थे।