वरिष्ठ संवाददाता लम्बा सफर, देहरादून। यू के डी अर्थात उत्तराखण्ड क्रान्तिदल एक ऐसा राजनीतिक दल जो कि उत्तराखण्ड राज्य निर्माण में अपनी अग्रणी भूमिका निभा चुका है। आज छिन्न-भिन्न, दिशाहीन होता जा रहा है। दरअसल राजनीतिक स्वार्थ के चलते इस दल की आज ये हालत हो चली है। आज हालत ये हो गई है कि यू के डी का कार्यालय एक धींगा मुश्ती का अखाड़ा बन गया है।
आपको बताते चलें कि केन्द्र्रीय नेतृत्व ‘‘काशी सिंह ऐरी’ की दिशाहीन राजनीति के चलते इस दल की ये हालत हो गई है। पत्रकार शिवप्रसाद सेमवाल और अधिवक्ता प्रमिला रावत अपने राजनीतिक स्वार्थ को साधने के लिए सड़क पर उतर आये हैं। कार्यालय पर कब्जा किसका हो ? नेतृत्व किसका हो, बस यही सोच है। छिन्न-भिन्न, दिशाहीन हो चुका दल अपनी हालत पर रो रहा है। जो दल उत्तराखण्ड की राजनीति में विकल्प बन सकता था, वो आज दिशाहीन होकर अपनेे अस्तित्व को लेकर सड़कों पर लड़ रहा है। काशी सिंह ऐरी कभी प्रमिला को दल से बाहर करते हैं तो कभी प्रमिला रावत को। दल की हालत को लेकर शायद ‘ऐरी’ भी असमंजस की स्थिति में हेैं।
आज की तारीख में शिवप्रसाद सेमवाल को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव से सक्रिय हुए सेमवाल ने यूकेडी में दोबारा से जान डालने का प्रयास किया था, और काफी हद तक सफल भी हुए थे। नहीं तो उत्तराखण्ड की जनता यूकेडी का नाम भूलने लगी थी।
प्रमिला रावत भी सक्रिय भूमिक में हैं। सेमवाल और प्रमिला रावत को आपसी मतभेद भुलाकर स्वार्थ की राजनीति छो़कर राज्य के मूल मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाना चाहिए।
आज उत्तराखण्ड की जनता एक राजनीतिक विकल्प चाहती है, जो शायद कांग्रेस नहीं दे पा रही है। ऐसे में विकल्प बनने के रास्ते यूकेडी के लिए खुले हुए हैं। यूकेडी को सेमवाल बनाम प्रमिला ना बनाएं।