विशेष संवाददाता लम्बा सफर, देहरादून/उत्तराखण्ड। नवनिर्मित उत्तराखण्ड आज भूमाफियाओं के लिए एक फायदे का सौदा बनता जा रह है जो कि आने वाले समय में जमीनों की खरीद फरोक्त व कब्जों के लेकर मैदानी क्षेत्रों की तरह पहाड़ों की शांति भंग होने की आशंका लिए हुए है।
उत्तराखण्ड राज्य का तकरीबन 10 प्रतिशत हिस्सा मैदानी है, जहां आये दिन जमीनों को लेकर भूमाफियाओं के बीच झगड़ों, कानूनी विवाद चलते रहते है। चाहे वो कुमाऊं का तराई क्षेत्र हो या गढ़वाल के कोटद्वार क्षेत्र अथवा देहरादून और हरिद्वार जिले की सीमाएं, जो कि उत्तर प्रदेश से मिलती हैं। मैदानी क्षेत्रों की भूमि धीरे-धीरे री-सेल में होने के कारण आसमान छू रही है। वहीं सुदूरवर्ती पहाड़ भूमाफियाओं एवं व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। यही वजह है कि भूमाफियाओं की की निगाहें अब हरिद्वार, रिषिकेश, देहरादून, मसूरी न होकर उत्तरकाशी, पुरोला, जोशीमठ, गोपेश्वर, चमोली, रूद्रप्रयाग जिलों के उन ग्रामों की ओर हैं जहां की अधिकतर आबादी पलायन कर चुकी है। यही वजह है कि जरा से लालच में ग्रामवासी अपनी पुश्तैनी भूमि औने-पौने दामों पर बेच रहे हैं।
आपको बताते चलें कि इस जमीनों के खरीद फरोख्त में ग्राम प्रधानों, पटवारी, तहसीलदारों की भूमिका भी संदिग्ध बनी हुई है। तमाम ग्रामसभाओं की जमीन भी कृषि भूमि के साथ बेच दी गई है। यहां तक कि शहरी क्षेत्र की बात तो हम करते ही नहीं यहां तो अतिक्रमण है ही……ग्रामीण क्षेत्रों में भी तमाम छोटे-छोटे गदेरे पाट दिये गये हैं, बरसाती नाले नवनिर्मित भवनों में तब्दील हो रहे हैं। जिस कारण दैविक प्रकोप का भी भय बढ़ता जा रहा है।
यही नहीं प्रधानों व अधिकारियों की सांठ-गांठ के चलते तमाम सरकारी व ग्राम सभा की जमीनों की रजिस्ट्रियां व दाखिल खारिज करा दी जा रही है। गौरतलब है कि पहाड़ों में उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद जिस तरह से बेहिसाब आबादी बढ़ी है, उसे देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले 10 से 15 वर्षों में जमीनों के लिए किस कदर जंग हो सकती है। पहाड़ों के वीरान पड़े पहाड़ आज अन्य प्रदेशों के लोगों की भीड़ से भरते जा रहे हैं। जिन घरों में कभी ताले नहीं लगते थे आज वहां चारी की घटनाएं पैर पसार रही है। असामाजिक तत्वों की जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। जो पहाड़ ईमानदारी और शांति के प्रतीक थे आज वो अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहली पसन्द बने हुये हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की भूमि धीरे-धीरे रिजोर्ट और होटलों में बदलने लगी है, जहां केवल और केवल अय्याशी होती है।
स्मय रहते सरकार को चेतना होगा, जहां उत्तराखण्ड के लिए सख्त भूकानून का लागू होना, वहीं ग्राम प्रधानों, पटवारियों एवं तहसीलदारों पर अंकुश लगाना भी अनिवार्य है।