भारत का संविधान भारत की आत्मा हैं: विजय झा
धनबाद/झारखंड: वरिष्ठ समाजसेवी सह पुर्व वियाडा अध्यक्ष विजय झा ने गणतंत्र दिवस के 74वें वर्ष की सभी देशवासियों को शुभकामनाएं दी। उन्होंने इस अवसर पर अपनी कलम से संदेश देते हुए कहा कि:
15 अगस्त 1947 को हमें आजादी मिली किंतु 26 जनवरी 1950 को भारत को अपना संविधान मिला और तभी से पूरा देश संविधान के द्वारा संचालित है I जब जब आवश्यकता पड़ती है, देश में कोई विधायी संकट, या कार्यपालिका का संकट सामने आता है, उसका समाधान हमारा संविधान देता है। समय के साथ -साथ संविधान में एक सौ से अधिक संशोधन लोकहित में किया जा चुका है I हमारा संविधान भारत के नागरिक की मौलिक अधिकार की व्याख्या करते हुए हर नागरिक को मौलिक अधिकार देता है, साथ ही हमारे कर्तव्य को भी सुनिश्चित करता है I सरकार हो या कार्यपालिका हो, या न्यायपालिका हो, सभी के अधिकार और उसकी सीमाओ को रेखांकित करता है। यह संविधान ही है जो सरकार को दिशा निर्देश देने का काम भी करता और आवश्यकता पड़ने पर उसे राह भी दिखाता है। लोकतंत्र के जो स्तंभ है, न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका इसको न सिर्फ संचालित करता है बल्कि आवश्यकता पड़ने पर इन्हें दंड भी देता है I संविधान को लागू हुए 74 वर्ष हो गए हैं। इन 74 वर्षों में आवश्यकतानुसार इसका लचीलापन को अनुभव किया गया I संविधान के द्वारा ही केन्द्र सरकार को पूरे देश के लिये और राज्य सरकार को अपने राज्य के लिए कानून बनाने का भी अधिकार दिया गया है किन्तु राजनीतिज्ञों ने अपनी सुविधानुसार संविधान का दुरुपयोग भी किया।
कहा कि दलबदल निषेध कानून के होने के बावजूद भी दलबदल देखने को मिला। यह एक तरह से लोकतंत्र की लोक निर्णय ( जनमत ) की अवमानना के समान है। बहुमत होते हुए भी तिकड्म के सहारे, प्रलोभन के सहारे, बड़ी ही सुगमता पूर्वक सत्ता बदलने का खेल पिछले दिनों देखा गया। जब हरियाणा में पहली बार पूरी सरकार ही दलबदल करके दूसरी पार्टी की सरकार में बदल गई, उसके बाद देश में एक कड़े दलबदल विधेयक की आवश्यकता महसूस की गई, किंतु आज भी वह दलबदल विधेयक आधी अधूरी है, क्योंकि इस विधेयक के रहते हुए भी बहुत बड़े पैमाने पर दलबदल का खेल खेला जा रहा है और चुनी हुई सरकार दल बदल के माध्यम से जनता के निर्णय के विपरीत सत्ता में आ जाती है। मध्य प्रदेश का सबसे घृणित उदाहरण है, मध्यप्रदेश में 26 विधायकों ने सत्ताधारी दल से विधायकी से इस्तीफा देकर दूसरे दल में चले गए और सभी मंत्री बनाए गए और सरकारें बदल गई I ऐसा कृत्य संविधान और दलबदल निषेध् कानून के रहते हुए भी संभव हो गया। संविधान इस कृत्य को, अवैध कृत्य होते हुए भी नही रोक पाया। दल बदल विधेयक की परिधि ही वह ( दलबदलू ) लोग दंडित नही हो पाए I इसका मतलब साफ है दल बदल विधेयक में और कड़े प्रावधान जोड़े जाने की आवश्यकता है, वर्ना अपने स्वार्थ में नेता और राजनीतिक दल, दलबदल कानून और संविधान का दुरुपयोग करते रहेंगे। इसलिए आज एक ऐसे कानून की आवश्यकता है, कि कोई भी व्यक्ति दलबदल करता है, वह किसी भी दल में जाए, वह मंत्री बनने के योग्य नही समझा जाएगा उसे उसके पूरे कार्यकाल तक मंत्री या किसी आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य लाभकारी पद पर 6 वर्षों तक नियुक्त नहीं किया जाए। ऐसा कानून यदि बनता है, तभी हम दलबदल पर रोक लगा सकते हैं और जनमत की रक्षा कर सकते हैं। जिस प्रकार दलबदल रोकने के लिए कानून होते हुए भी प्रभावी कानून नहीं है, ठीक उसी प्रकार से दागी अपराधी सजायाफ्ता को सत्ता में आने से रोकने के लिए ठोस एवं प्रभावी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, वर्ना अभी तो मात्र 51% ही दागी अपराधी सदन के सदस्य बन बैठे हैं यदि कोई ठोस प्रावधान नहीं किया गया और दागी, अपराधी, सजायाफ्ता को रोकने में संविधान और कानून ने कोई कड़े कदम नहीं उठाए तो वह दिन दूर नहीं है जब दागी अपराधी सजायाफ्ता ही न सिर्फ राजनीतिक दलों की शोभा बढ़ाएंगे बल्कि किसी भी सदन के सदस्य भी बनने में सफल हो जाएंगे और हम पर राज भी करेंगे। ए.डी.आर. की रिपोर्ट के अनुसार 51% दागी-अपराधी, सदन में सदस्य हैं, यह लोकतंत्र पर एक धब्बा के समान है और इसी ए.डी.आर. की रिपोर्ट के अनुसार 91% करोड़पति सदन के सदस्य बने बैठे हैं। भारत किसानों का देश है, मजदूरों का देश है, आज किसान और मजदूर का प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है, यह स्वस्थ लोकतंत्र पर एक सवालिया निशान भी है। स्वस्थ लोकतंत्र तो तभी कहा जा सकता है जब इसमें सभी लोगों की समान भागीदारी हो, गरीब तबके, अति गरीब तबके, भी अपना प्रतिनिधित्व भेज सकें, जिससे उनकी बात भी सदन में गूंजे। इसकी अति आवश्यकता है तभी यह सर्वांगीण लोकतंत्र और नीचे तबके के लोगों तक लोकतंत्र हम पहुंचा पाए, ऐसा दावा सही हमारा साबित होगा। आजादी के इतने वर्षों के बाद भी यह चुनौतियां हमारे सामने खड़ी है। लोकतंत्र को दागी, अपराधी कलंकित ना कर सके इसके लिये 2 वर्ष की सजा मिलने पर सदस्यता समाप्त होना ही पर्याप्त नहीं है, क्योकि वर्तमान कानून के रहते हुए भी 51% दागी अपराधी सदन में पहुंच गए हैं और वर्तमान राजनीति में और राजनीतिक दलों में अपना एक आधिपत्य स्थापित कर लिया है। आवश्यकता है, एक ऐसे कानून लाने की जिसमें कोई भी दागी अपराधी राजनीतिक दल का सदस्य ना बन सके और अगर सदस्य बन भी जाए तो चुनाव नहीं लड़ सके इसलिए ऐसे कठोर कानून की आवश्यकता है। यदि न्यायालय से एक माह की भी सजा होती है, आपराधिक मामले में वह दंडित किया जाता है, अपराध उसका साबित हो जाता है, चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाए। ऐसे कठोर कानून से ही हम लोकतंत्र को कलंकित होने से बचा सकते हैं और जिस सुराज की कल्पना हमारे राष्ट्र नायकों ने किया था उस सुराज को हम अगली पीढ़ी तक पहुंचा सकते हैं वर्ना राजनीतिक ताकत का दुरुपयोग करके दागी और अपराधी राजनीतिक दलों को भी शर्मसार कर रहे और आम आदमी का जीना दूभर कर रहे। हम 2 वर्षों के बाद गणतंत्र दिवस का भी अमृत महोत्सव मनाने वाले हैं, उसके पहले दल बदल निषेध कानून को संशोधन किया जाए, तमाम छिद्रो को बंद किया जाए। वर्तमान में जो भी छिद्र हैं जिसका फायदा सुविधानुसार सभी दलों ने उठाया है, उन तमाम छिद्रो को बंद किया जाए और एक ऐसा सशक्त कानून का स्वरूप आए जिससे दलबदल पूर्णतः समाप्त हो जाए, वर्ना राजनीतिक प्रलोभन, सत्ता का प्रलोभन, पैसा का प्रलोभन, पद का प्रलोभन, के माध्यम से दलबदल होता रहेगा और जनता ने चुनाव के माध्यम से जो अपना निर्णय दिया है उस निर्णय की हत्या होती रहेगी। जनमत के निर्णय की हत्या, संविधान की हत्या के समान है I उसी प्रकार एक भी दागी -अपराधी या सजायाफ्ता का राजनीति में पदार्पण पूरी राजनीति को कलुषित करता है और लोकतंत्र पर से लोगों की आस्था घटती है।
उन्होंने कहा कि इसका जीता जागता उदाहरण मतदाता की चुनाव में घटती हिस्सेदारी है। आज सारे प्रयास करने के बावजूद किसी स्तर के चुनाव में 60 से 70% ही मतदान हो पा रहा है यानी कि 30 से 40% लोग मतदान नहीं कर रहे हैं, यह चिंता का विषय है क्योंकि लगभग एक तिहाई लोगों ने अपने आप को मतदान पर्व से अलग कर लिया है। आज सभी राजनीतिक दलों की यह जिम्मेवारी है कि सामूहिक प्रयास करें कि शत प्रतिशत मतदान हो I जो सरकार बने वह 100% लोगों के लिए काम भी करें, अपने जाति, अपने समूह, अपने दल से ऊपर उठकर संपूर्ण समाज के लिए अपनी राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल करें, अपने राजनीतिक पद का इस्तेमाल करें, यही स्वस्थ लोकतंत्र का तकाजा है और यही संविधान की मूल भावना है, क्योंकि संविधान का पहला शब्द है. ” हम भारत के लोग ” आज इस को सार्थक करने की आवश्यकता है तभी हम इस संविधान के असली वाहक कहलाने के काबिल होंगे I
जय हिंद !!
बिजय कुमार झा, वरिष्ठ समाजसेवी सह पूर्व बियाडा अध्यक्ष।