कर्नाटक में कांग्रेस की हुई शानदार जीत -भाजपा को मिली शिकस्त!

भाजपा -प्रधानमंत्री मोदी के अतिविश्वास ने पार्टी की लुटिया डुबोई!

कर्नाटक की जनता ने बहुमत से ज्यादा सिट पर कांग्रेस को दिलाई जीत!

भाजपा का जनता पर ओवरडोज फार्मूला हुआ फेल!

दिल्ली/कर्नाटक (लम्बा सफर ब्यूरो): कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बधाई दी। पत्रकारों से वार्ता के दौरान राहुल ने कहा कि इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत के साथ जीत दिलाने के लिए कर्नाटक की जनता का शुक्रिया। अब कर्नाटक में नफरत का बाजार बंद हुआ, यह जनता की जीत हैं।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कुल 224 सिटों का रिजल्ट घोषित हो चुका हैं। कांग्रेस इस बार प्रचंड बहुमत से जीतकर 137 सिटे लेकर आई हैं। भाजपा 64 सिटो पर सिमट कर रह गई तो वहीं जेडीएस को 19 सिट और 4 सिटे अन्य के खाते में गई हैं।

भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी के अतिविश्वास ने लुटिया डुबोई!

गोदी मीडिया के दम पर भारी -भरकम चुनाव प्रचार और बड़े मुद्दों पर दांव खेलने के बाद भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी शिकस्त हुई हैं। पार्टी को सबसे करारा झटका उन्हीं लिंगायत सीटों पर लगा है जो राज्य में उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति माने जाते थे। राजनीतिक गलियारों में इसे ‘येदियुरप्पा प्रभाव’ कहा जा रहा है। भाजपा को अपने बूढ़े शेर की उपेक्षा भारी पड़ी और लिंगायत मतदाताओं ने उससे किनारा कर लिया। दरअसल भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी के अतिविश्वास ने पार्टी की लुटिया डुबोई!

अंदरखाने से पार्टी नेताओं का भी मानना हैं कि यदि इस चुनाव में केंद्रीय नेतृत्व ने सब कुछ अपने मनमाने आधार पर निर्णय न किया होता तो आज चुनाव परिणाम कुछ और ही हो सकता था!

भाजपा ने कर्नाटक में उसी समय गलती कर दी थी जब मुख्यमंत्री येदियुरप्पा से इस्तीफा ले लिया गया। केवल जनरेशन चेंज और भ्रष्टाचार विरोधी फैक्टर कमजोर करने के लिए यह दांव खेला गया, लेकिन सभी जानते हैं कि येदियुरप्पा इस निर्णय से खुश नहीं थे। हालांकि, इसके बाद भी येदियुरप्पा अपने बेटे विजयेंद्र को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए उनकी इस मांग को भी अनसुना कर दिया!

कांग्रेस के पास बहुमत से ज्यादा सिट -सरकार बनाने के लिए सहारे की जरूरत नहीं!

कर्नाटक की जनता ने इस बार भाजपा को दरकिनार कर कांग्रेस को बहुमत के आंकड़े से कहीं ज्यादा सिटो पर जित दिलाई हैं। इस बार सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को किसी सहारे या बैशाखि की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसलिए मुख्यमंत्री के सवाल पर बहुत टकराव होने की संभावना भी कम दीख रही है। माना यही जा रहा है कि दोनों ही बड़े दावेदारों को पार्टी आलाकमान नाखुश नहीं करेगा। इस फार्मूले की पूरी संभावना है कि सिद्धारमैया को उनके अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है, साथ ही डी.के. शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री और सिद्धारमैया के सबसे विश्वस्त कमांडर के तौर पर रखा जा सकता है। अभी बेशक इस बारे में खुलकर कोई नहीं बोल सकता क्योंकि अंतिम फैसला पार्टी आलाकमान और खासकर अध्य़क्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को करना हैं तो जाहिर हैं इसपर मुहर विधायक दल की बैठक में ही लगेगी।

कांग्रेस के लिए कर्नाटक में प्रचंड जीत के हैं कई मायने!

दरअसल इसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर मानिए या फिर कर्नाटक के ही सबसे वरिष्ठ जमीनी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने का नतीजा। सबसे बड़ी बात यह सामने आई हैं कि यहां की जनता ने यह साबित कर दिया कि अब उन राज्यों में मोदी मैजिक का असर नहीं हो रहा हैं जहां स्थानीय मुद्दे या फिर जनता से जुड़े बड़े सवाल मायने रखते हैं। वहां धार्मिक या कथित तौर पर हिन्दू राष्ट्रवाद का फार्मूला भी नाकाम साबित होता दिख रहा हैं। किसी भी मुद्दे का बहुत ज्यादा ओवरडोज जनता शायद पचा नहीं पा रही है। इसके बावजूद तमाम चैनलों पर भाजपा के नेतागण यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी नैतिक हार हुई हैं। वह बार -बार यही कह रहे हैं कि उनकी वजह से ही कांग्रेस के विचारधारा का भगवाकरण हुआ हैं। राम और हनुमान में आस्था बढ़ी है, पूजा -पाठ और मंदिरों की तरफ उनका झुकाव हुआ हैं। यही भाजपा के विचारधारा की जीत है। इस बेबुनियाद तर्क से वे साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि संघ, जनसंघ या भाजपा से पहले भगवान में किसी की आस्था नहीं थी, कोई मंदिर नहीं जाता था, या कोई पूजा पाठ नहीं करता था। जनता ने इस कुतर्क को हिमाचल में भी ठुकराया और अब कर्नाटक में तो जो नतीजे आए हैं वह सबके सामने है।

बताते चलें कि 2024 संसदीय चुनाव के लिए भी भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अतिविश्वास से लवरेज हैं। यहीं अहंकार बड़बोलापन देश की जनता अब समझ चुकी हैं। अब किसी भी जनप्रतिनिधि के लिए केवल भाजपा और मोदी के नाम पर चुनाव जितना मुश्किल होगा क्योंकि देश की जनता, किसान, मंहगाई, बेरोजगारी वह अन्य ज्वलंत मुद्दों से त्रस्त हैं।

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