स्ंवाददाता लम्बा सफर, देहरादून। आजकल उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के ग्रामीण क्षेत्रों में बाघ का आतंक मचा हुआ है। पहली घटना तकरीबन 2 महीने पहले सीगली गांव में हुई थी, जहां शाम ढलते ही घर से 3 साल के बच्चे को बाघ ने अपना निशाना बनाया था। सूत्र बताते हैं कि उसके बाद से ही बाघ अक्सर दिखाई देने लगा है। कभी, रिखोली, किमाणी तो कभी गल्जवाड़ी के जंगलों में। वन विभाग की स्थानीय इकाई लगातार स्थिति पर नजर रखे हुए है। रात-रात भर सूचना मिलते ही सघन अभियान चलाते हुए पटाखों के माध्यम से बाघ को भगाने का काम करती है।
किंतु कल रात तकरीबन 7.30 बजे इस नरभक्षी बाघ ने वन गुर्जरों के डेरे पर हमला कर 8-9 साल के बच्चे को अपना निशाना बनाया। बाघ से बच्चे को किसी तरह छुड़ाया गया। मौके पर पुलिस प्रशासन व वन विभाग की टीम भी पहुंची। किंतु पुलिस टीम वन गुजर््ारों के डेरे जो कि गल्जवाड़ी से संतला देवी मार्ग पर मराड़ी गांव में है पर जाने से कतराती देखी गई। गल्जवाड़ी ग्राम के रहवासियों ने हिम्मत दिखाकर मराड़ी से उस बच्चे के क्षत-विक्षत शव को बच्चे के परिवार के साथ लाकर पुलिस को सौंपा। जहां ग्रामवासियों व पीड़ित परिवार की पुलिस के साथ हल्की धक्का मुक्की भी हुई। खैर बच्चे के शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया।
कुल मिलाकर क्षेत्र में बाघ का आतंक बरकरार है। जहां एक तरफ आजकल जंगलों में पहाड़ों से भेड़-बकरी वाले डेरा डाले हुए हैं। भेड़-बकरियों के कारण भी बाघ का खतरा बढ़ जाता है। यही हाल वन गुर्जरों का है। वो लोग घने जंगलों के बीच डेरा डालकर अपना जीवन यापन करते है। ऐसे में जंगली जानवरों का खतरा बना ही रहता है। ऐसे में वन विभाग के लिए चुनौती अधिक होती है।
जहां एक ओर नरभक्षी होता बाघ ग्रामवासियों के लिए भय का माहौल पैदा कर रहा है, वहीं वन विभाग के लिए चुनौती बना हुआ है। रात तकरीबन 10 बजे पुलिस बच्चे के शव को लेकर रवाना हुई। गल्जवाड़ी क्षेत्र के नागरिकों के अलावा रिखोली ग्राम प्रधान शोभन पुण्डीर एवं रिखोली किमाणी, भितरली तक के ग्रामीण मौके पर उपस्थित थे।