जंगल में आग साजिश है या प्राकृतिक आपदा ?

गल्जवाड़ी ग्राम के जंगलों में लगातार जारी है आग का लगना

संवाददाता लम्बा सफर, देहरादून। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड के जंगलों में प्रतिवर्ष आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं। जहां चीड़ के जंगल हैं, वहां तो आग का लगना सामान्य माना जाता है। किन्तु सॉल के जंगलों में आग प्राकृतिक आपदा नहीं दिखाई देती। ऐसे में क्या कुछ असामाजिक तत्व इन घटनाओं को अंजाम देते हैं। जांच का विषय है। गतवर्ष भी गल्जवाड़ी और उसके आस-पास के क्षेत्र में भीषण आग लगी थी। जिन पर वन विभाग की टीम ने तत्परता दिखाते हुए आग पर काबू पा लिया था। अभी तो गर्मी ढंग से शुरू भी नहीं हुई, और आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी है।

पतझड़ का मौसम है, ऐसे में जंगल में एक चिंगारी ही काफी होती है, जो कि भयंकर हादसे का कारण बनती है। आग के कारण अनेकों छोटे-छोटे जीव जंतु स्वाहा हो जाते हैं। जंगल की रखवाली केवल और केवल वन विभाग की नहीं है। स्थानीय लोगों का भी दायित्व बनता है कि अपने आस-पास के जंगलों को सुरक्षित रखें। जंगल हमारे जीवन के लिए अति आवश्यक है, प्रकृति की धरोहर है, हमारे जीवन के लिए। अतः हमें अपने आस-पास के वनों को सुरक्षित रखना होगा।
26 अप्रैल की प्रातः लगी आग भयानक रूप ले सकती थी। किंतु समय पर वन विभाग को सूचना दी जा सकी, और वन विभाग की टीम ने तत्परता दिखाते हुए 4 घन्टे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया। हमें ध्यान रखना चाहिए कि भविष्य में इस तरह की घटना ना हो।

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