नरेश कुमार चौेबे, लम्बा सफर, देहरादून। तमाम सरकारी योजनाएं आम आदमी के लिए बनने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। पहले भी इसके लिए लाल फीताशाही जिम्मेवार थी, और आज भी। सरकारें बदलती रहीं किंतु लाल फीताशाही ज्यों की त्यों अपना मुंह सुरसा की भांति फाड़े ही रहती है। सरकारें अगर ईमानदारी से काम करना भी चाहें तो लाल फीताशाही तमाम तरह की अड़चनें डाल देती है।
आपको बताते चलें कि अनेकों ऐसी योजनाएं जोकि निम्न व मध्यमवर्गीय जनमानस के लिए बनी है वो आम जनमानस तक पहुंच ही नहीं पाती। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्र में जहां ग्राम प्रधान जिम्मेदार हैं, उनके साथ ग्रामीण विकास में लगा तमाम सरकारी अमला भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता। पंचायती राज की व्यवस्था इसीलिए बनाई गई थी कि सूबे के आखिरी व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके। किंतु कुछ ग्राम प्रधानों के कारण सरकारी योजनाएं या तो ग्राम प्रधानों के करीबियों को लाभ पहुंचाती दिखाई देती हैं या फिर सूचना के अभाव व कम जानकारी के कारण दम तोड़ती दिखाई देती है।
वो कहते हैं कि चावल की हांडी में से एक चावल को देखकर जिस प्रकार पता लगा लिया जाता है कि चावल पक चुके हैं। उसी प्रकार उत्तराखण्ड के गांवों की हालत देखकर अंदाजा लगता है कि किस प्रकार लाल फीताशाही केवल और केवल कागजों में ही विकास कार्य कर रहे हैं।
जैसा कि आज देखने को मिला । गल्जवाड़ी ग्राम सभा में अचानक ही बिना किसी पूर्व सूचना के सरकारी अमला इकठ्ठा होना शुरू हो गया। जानकारी प्राप्त होने पर पता चला कि ‘‘सरकार आपके द्वार’’ कार्यक्रम के तहत जिले के सभी विभागों के अधिकारी आ रहे हैं, जो जनता की समस्या सुनेंगे और समाधान करेंगे। ग्राम प्रधान से पूछा गया कि कौन सी जनता, जब जनता को सूचना ही नहीं है तो क्या अधिकारी अपना ज्ञानवर्धन प्रधान के द्वारा ही करके चले जायेंगे। जिस पर जिले के आगंतुक पंचायत अधिकारी का कहना था कि सूचना कल शाम तक ही पहुंचा पाये।
एक बात काबिलेगौर है कि सूचना क्रांति का जमाना है, हर घर में मोबाइल है, उसके बावजूद 18 घंटे पहले सूचना ग्राम सभा में नहीं पहुंच पाई या पहुंचानी ही नहीं चाही गई। यही नहीं गल्जवाड़ी ग्राम सभा में 9 वार्ड हैं, उन 9 वार्ड मेम्बरों को भी सूचना नहीं दी गई थी।
खैर ‘‘सरकार आपके द्वार’’ कार्यक्रम की खानापूर्ति हुई, और एक बार फिर जिले की टीम अपनी पीठ स्वंय थपथपाते हुए लौट गई।