संविधान की रक्षा ही लोकतंत्र की रक्षा हैं: बिजय झा

वरिष्ठ समाजसेवी सह पुर्व वियाडा अध्यक्ष विजय झा की कलम से!

कतरास/धनबाद: (नेशनल): वरिष्ठ समाजसेवी सह पुर्व वियाडा अध्यक्ष विजय झा की कलम से,,,,,सभी देशवासियों को 76 वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए विजय झा ने लोकतंत्र के हित में कुछ ऐसी बातें लिखी हैं जो कड़वा सत्य हैं जिसके बारे में गंभीरता से सोंचने और समझने की जरुरत हैं!

उन्होंने लिखा है कि आजादी को 76 वर्ष पूरे हो गए, पिछले 76 वर्षो में लोकतंत्र के स्तंभ की क्या स्थिति है, उसकी आज समीक्षा करने का दिन है। पूरा देश अमृत काल मना रहा है, परन्तु इस अमृत काल में लोकतंत्र के चारो स्तंभ (1) न्यायपालिका, (2) कार्यपालिका, (3) विधायिका और (4) स्वतंत्र प्रेस। पिछले 76 वर्ष में कितना परिपक्व हुआ है, इसका भी आंकलन करना आवश्यक है।

(1) न्यायपालिका: आज न्यायपालिका के पास लगभग 5 करोड़ मामले लंबित हैं, प्रत्येक मामले में वादी और प्रतिवादी को जोड़ दिया जाए तो देश में लगभग 10 करोड़ लोग न्याय की प्रतिक्षा में खड़े हैं, उनके मामले का निपटारा कब होगा, उन्हें नहीें मालूम। सुप्रीम कोर्ट के बार -बार कहने के बाबजूद भी सीटिंग एम.एल.ए. और एम.पी. के मामले का निष्पादन एक वर्ष में किया जाना चाहिए, किन्तु इसका पालन नहीं हो पा रहा है। न्याय का सिद्धांत है कि ‘‘देरी से न्याय मिलना, न्याय नहीं मिलने के समान है’’ अधिकांश लोग महंगे न्याय, विलंब से न्याय के कारण निराश हैं। कभी -कभी महंगे न्याय और अदालत के चक्कर काटने के चलते आम आदमी न्यायालय के चैखट तक पहुंच नहीं पाते हैं, जिससे उन्हें न्यायालय से उदास होना पड़ता है। न्याय से वंचित होना लोकतंत्र के लिए अभिशाप के समान है। पिछले दिनों में खुली अदालत में न्यायाधीश का इस्तीफा देना देश के लिये चिन्ता का विषय है।

(2) कार्यपालिका: स्वतंत्रता काल के 76 वर्ष में सरकारी लाल फीता शाही के कारण आम आदमी निराश हो गए हैं, अक्सर देखा जाता है कि वर्षों से कोई आदमी सरकारी कार्यालय में बैठे किसी सरकारी बाबू का चक्कर लगा रहा होता है और उसकी फरियाद होती है कि ’’वह जिन्दा है, पर सरकारी कार्यालय के फाईल में उसे मृत बता दिया गया है और उसका पेंशन रोक दिया गया है, कार्यालय में सशरीर खड़ा रहने के बावजूद वह साबित नहीं कर पाता है कि वह जिन्दा है। सरकारी भवन के उद्घाटन के पहले ही भवन का छत धंस जाता हैं! पुल के उद्घाटन के पूर्व ही बरसात में पुल ढह जाता हैं! नहर के उद्घाटन के पूर्व ही नहर का बांध ही बह जाता हैं! करोड़ों के नहर को चूहे कुतर जाते हैं!ऐसी घटना अब जनमानस को विचलित नहीं करती है, सबको पता है कि कटमनी के कारण ये चीजें हो रही है। भ्रष्टाचार की बात तो सभी नेता करते हैं, किन्तु कोई भी कटमनी पर अपना मुँह नहीं खोलता हैं! कटमनी पे मुखर नहीं होने के परिणामस्वरूप विकास के हर कार्यो में कटमनी एक कैंसर का रूप ले चुका हैं! कोई भी इसे स्वीकार नहीं करना चाहता है। आज के लोकतंत्र का भयावह प्रश्न यही है। विकास के नाम पर अरबों रूपये खर्च होते हैं पर अधिकांश कटमनी की भेट चढ़ने के कारण देश के विकास पे ग्रहण लग जाता है। स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए यह भी एक चुनौती हैै।

(3) विधायका: एक दौर था, जब सभी राजनीतिज्ञों की सम्पति, सादगी, नैतिकता, ईमानदारी हुआ करती थी, जिसके कारण सभी राजनीतिज्ञों के प्रति आमजन का श्रद्धाभाव, भक्तिभाव भरा रहता था, किन्तु आजादी का अमृत काल आते -आते सादगी की जगह विलासिता, नैतिकता के जगह अनैतिक, आचरण और ईमानदारी के जगह खुलकर भ्रष्टाचार ने ले लिया हैं! किसी भी दलों को अब ऐसे लोगो से परहेज नहीं हैं, कोई भी राजनैतिक कार्यकर्ता तभी तक अनैतिक, भ्रष्टाचारी और अपराधी हैं जब तक की वह किसी दूसरे पार्टी में है, किन्तु जब वही नेता उनकी पार्टी में आ जाते हैं तो वह पूरी तरह से पवित्र और अनुकरणीय हो जाते हैं। जनता देखकर हतप्रभ रह जाती है कि कल तक जिसे राज्य के भ्रष्टाचार का किंग -पिन बताया जाता था, आज वही व्यक्ति पार्टी का शिरमौर बन गया हैं। इसी देश में कुछ ऐसे भी मुख्यमंत्री हुए की तीन टर्म, चार टर्म रहने के बाबजूद उनको रहने के लिए अपना घर नहीं था आज ऐसी सादगी सिर्फ और सिर्फ किताबों तक सीमित रह गई है।

A.D.R (एशोसिएट डेमोक्रेटिक रिपोर्ट ) नामक संस्था के द्वारा देश भर में किसी भी चुनाव के संपन्न होने के बाद प्रत्याशी द्वारा दाखिल किए गए हलफनामा के आधार पर प्रत्याशी की शैक्षणिक योग्यता, प्रत्याशी की संपत्ति, प्रत्याशी की देनदारियां, प्रत्याशी के खिलाफ आपराधिक मुकदमें इन सभी चीजों का आंकलन करने के बाद मतदाताओं को जागरुक करने के उदेश्य से A.D.R अपनी रिपोर्ट जारी करती है। रिपोर्ट में दी गई जानकारी का मुख्य स्रोत चुनाव आयोग की बेबसाईट (www.esi.nic.in ) से प्राप्त की जा सकती है। 31 जनवरी 2023 को A.D.R के द्वारा जो हालिया रिपोर्ट जारी किया गया है, वह चौकाने वाली है।

आजादी के 76 वर्षों के बाद लोकतंत्र के प्रति हम कितने परिपक्व हुए, इस पर भी सवाल खड़ा करता है। A.D.R रिपोर्ट के दो तथ्य चौकाने वाले हैं हमने आजादी के 76 वर्ष पूरी किया हैं, देश आज अमृत काल मना रहा है किन्तु दूसरी ओर 51 प्रतिशत दागी -अपराधी और 91 प्रतिशत करोड़पति सदन के सदस्य बन बैठे हैं! राज्य के 29 प्रतिशत मंत्रियों पर गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं, जबकि 43 प्रतिशत मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं! हत्या, हत्या का प्रयास, महिलाओं के ऊपर अत्याचार का आरोपित 19 मंत्री हैं और सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामले 11 मंत्री पर हैं।

देश के कुल राज्यों में से 11 राज्यों में कुल 151 मंत्री उन सभी के सभी करोड़पति हैंः- अरूणाचल प्रदेश, छतीसगढ़, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मणिपुर, पाण्डेचेरी, तेलगांना और उत्तराखण्ड के कुल 151 मंत्री हैं, सभी करोड़पति हैं। यही कारण है कि आम आदमी का विषय महंगाई, बेरोजगारी, मजदूर और किसान का विषय आज किसी भी सदन में चर्चा से गायब हैं!

ऐसे -ऐसे जनप्रतिनिधि जो हजारों करोड़ के मालिक हैं उनकी सुरक्षा के लिए, उनके वेतन सहित अन्य सुविधाओं के लिए इस देश के गरीब टैक्सपेयर के पैसे से तमाम सुविधा मुहैया कराया जाता है। एक तरफ देश के गरीब से गरीब व्यक्ति से देश के विकास के नाम पर बच्चों के दुध और चाॅकलेट पर भी जीएसटी लिया जाता हैं तो वहीं दूसरी ओर अरबपति जनप्रतिनिधयों के उपर देश के गरीब टैक्स पेयर के पैसों से उनकी सुख सुविधायें पूरी की जाती हैं! अमृत काल में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये कि जो अरबती जनप्रतिनिधी होंगे, उनकी सुरक्षा या अन्य सुविधाओं के लिये गरीब टैक्स पेयर्स के पैसे खर्च नहीं होंगे। पूरा देश ऐसे विधेयक का स्वागत करेगा।

(4) स्वतंत्र प्रेस: एक दौर था जब प्रेस से जुड़े हुए तमाम लोग स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में शामिल थे। आजादी के तुरन्त बाद प्रेस से जुड़े लोगों ने सरकार को राह दिखाने का काम किया और सरकार के भटकने पर कान खींचने का भी काम किया। किन्तु वर्तमान दौर मेें अधिकांश प्रेस पर काॅरपोरेट जगत का कब्जा हो गया है। पहले प्रेस के मालिक स्वंय बड़े -बड़े पत्रकार हुआ करते थे, किन्तु आज कलम पर पहरा लग गया हैं! काॅरपोरेट जगत नेरेटिव सेट करता है, उसी दिशा में जन चर्चा को मोड़ने का प्रयास किया जाता है। आज के दौर में अधिकांश प्रेस सत्ताधारी पार्टी के कार्यकलाप पर कम विपक्ष पर ज्यादा सवाल उठाते हैं, जिसके कारण जनता की नजरों में प्रेस की स्थिति हास्यास्पद हो जाती हैं! आज प्रेस को अपनी साख बचाने की जरूरत है। लोकतंत्र में स्वतंत्र प्रेस की अहम भूमिका है, यदि प्रेस उस भूमिका से विमुख होगा तो लोकतंत्र को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

लोकतंत्र को बचाने में सबसे बड़ी भूमिका देश की आम जनता की हैं। लोकतंत्र में यदि कुछ गलत स्थापित हो रहा हैं तो इसकी जिम्मेवार आम जनता हैं और आमजन को यह चुनौती स्वीकार करनी होगी। अगर 51प्रतिशत दागी, अपराधी सदन में बैठे हैं तो ऐसी परिस्थिति से देश को आमजन ही बचा सकता है। एक मतदाता की हैसियत से हमने जाति, धर्म और मजहब के आधार पर उम्मीदवार का चयन किया है, इसलिए इसका दोषी आम मतदाता हैं! हमारे पूर्वजों की तरह आज के पीढ़ी को यह निर्णय लेना होगा कि ज्ञान, चरित्र और ईमानदारी के आधार पर मतदान करना होगा ऐसा करने से स्वतः परिदृश्य बदल जाएगा और चरित्रवान, योग्य और ईमानदार प्रतिनिधि सदन में बैठे नजर आयेंगे।

आज का दिन यह संकल्प लेने का दिन है कि हम अपने मताधिकार का सही उपयोग करेंगे। दागी, अपराधी और सजायाप्ता को वोट नहीं देंगे और जो पार्टी ऐसे लोगों को टिकट देगी संपूर्ण जिला में ऐसे पार्टी का नकार दिया जायेगा। तब पूरे जिले का परिदृश्य स्वंय बदल जाएगी और पार्टियां ज्ञानी, ईमानदार और चरित्रवान व्यक्ति को टिकट देने लगेगी, ऐसा नहीं है कि राजनीतिक दल में ज्ञानी, चरित्रवान लोगों की कमी है किन्तु पार्टिया ऐसे तमाम सदस्यों को हासिये पर रखी हुई है। जिसके कारण आज दागी, अपराधी और सजायाप्ता पार्टी का पोस्टर बाॅय बन गए हैं। देश के मतदाता ही इस दृश्य को अपने मताधिकार से बदल सकता है। यही संकल्प लेकर शहीदों को नमन करने का दिन है।

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