क्या सरकारी भूमि से कब्जे हटाने में नाकामयाब हो रहे हैं अधिकारी या फिर मामला कुछ और है ?

काबिलेगौर है कि जिस भूमि में एम.डी.डी.ए अधिकारी 12.5 बीघा सीलिंग की जमीन बता गये थे, और आशंका जताई थी कि उक्त 85 बीघा में राजस्व या ग्रामसभा की भी भूमि हो सकती है। शिकायतकर्ता को आश्वस्त कर गये थे कि जल्द ही भूमि की पैमाईश कर सरकारी भूमि की घेराबंदी की जायेगी। किंतु आश्चर्य की बात है कि नवम्बर 2022 में तहसीलदार और पटवारी एवं एम.डी.डी.ए अधिकारी आये थे । किंतु आज 7 माह बाद कानूनगो को इस 85 बीघा में कुछ भी गलत नहीं दिखाई दे रहा। कहीं ना कहीं कुछ तो गड़बड़ है।

वरिष्ठ संवाददाता, लम्बा सफर, देहरादून/उत्तराखण्ड। पंचायती राज की स्थापना शायद इसी उद्देश्य के साथ की गई थी कि प्रत्येक गांव सबल बन सके। केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा पालित योजनाएं ग्राम प्रधानों, पंचायत सचिव व ग्राम विकास अधिकारी और तमाम लाव लश्कर के साथ देश के अंतिम व्यक्ति तक सरकारों द्वारा पालित योजनाओं का लाभ मिल सके। किंतु अपनी युवाअवस्था में पहुंच चुका उत्तराखण्ड राज्य, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी ग्राम प्रधानों एवं शासन की जड़ों में पैंठ बना चुके अधिकारियों के कारण बुरी तरह ठगा जा रहा है।
तमाम ग्राम सभा की जमीनें ग्राम प्रधानों द्वारा पटवारी, कानूनगो और तहसीलदारों के साथ मिलकर खुर्द-बुर्द कर दी गई है। यहां तक कि अनगिनत शिकायतों के बावजूद शासन-प्रशासन इन भूमाफियाओं के हाथों अपने को असहाय पाता है। गत सप्ताह गल्जवाड़ी ग्राम सभा के गद्दूवाला ग्राम में इलाके के कानूनगो, पटवारी एक भूमि की शिकायत पर जांच के लिए आये थे। जहां ग्राम प्रधान भी मौजूद थी। ग्राम प्रधान ने कथित भूमि के ताजा खरीददार से कानूनगो की मो. पर बात कराई। जहंा कथित भूमि के ताजा खरीददार ने कानूनगो को धमकाने वाले अंदाज में कहा कि मेरी जिलाधिकारी से बात हो गई है। जिलाधिकारी ने कहा था कि इस भूमि पर जिले का कोई अधिकारी नहीं जायेगा। जहां कानूनगो माननीय न्यायालय के स्थगन आदेश का पालन कराने आये थे, वहीं उल्टे पैरों लौट गये, और जांच रिपोर्ट भेजने में भी जल्दबाजी दिखाई और सरकार को आश्वस्त कर दिया कि किसी तरह का निर्माण उक्त सरकारी भूमि पर नहीं चल रहा है
काबिलेगौर है कि जिस भूमि में एम.डी.डी.ए अधिकारी 12.5 बीघा सीलिंग की जमीन बता गये थे, और आशंका जताई थी कि उक्त 85 बीघा में राजस्व या ग्रामसभा की भी भूमि हो सकती है। शिकायतकर्ता को आश्वस्त कर गये थे कि जल्द ही भूमि की पैमाईश कर सरकारी भूमि की घेराबंदी की जायेगी। किंतु आश्चर्य की बात है कि नवम्बर 2022 में तहसीलदार और पटवारी एवं एम.डी.डी.ए अधिकारी आये थे । किंतु आज 7 माह बाद कानूनगो को इस 85 बीघा में कुछ भी गलत नहीं दिखाई दे रहा। कहीं ना कहीं कुछ तो गड़बड़ है।
इसी तरह का एक मामला बिस्ट गांव के खादर का है, जहां ग्राम सभा की जमीन पर कब्जा कर अन्यत्र जमीन देने की बात की जा रही है। ये मात्र दो गांव की बात नहीं है। उत्तराखण्ड के दर्जनों ग्राम अपनी ग्राम सभा की जमीनें खुर्द-बुर्द कर चुके हैं। ग्राम प्रधान और राजस्व विभाग से संबधित अधिकारी इस काली कमाई से अपनी तिजोरियां भरने में लगे हुए है।
आपको बताते चलें कि शिकायतकर्ता 2005 से डटा हुआ है और उसका विश्वास है कि कभी तो कोई ईमानदार अधिकारी आयेगा और दूध का दूध पानी का पानी होगा। क्या ऐसा सम्भव है, जहां काजल की कोठरी में सभी सयाने लगते हैं क्या कोई ईमानदार अधिकारी उत्तराखण्ड सरकार में है जो सरकारी जमीनों को बचा सके।

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