लम्बा सफर, देहरादून। दिनांक 27 अक्टूबर को उत्तराखण्ड में जलवायु परिवर्तन को लेकर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें अनेकों शिक्षाविदों ने भाग लिया।
विशेषज्ञों के अनुसार भारत को अपनी विकास योजनाओं के केंद्र में जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को शामिल करना ज़रूरी है।
.उत्तराखंड को निर्माण, मलबा निस्तारण और जल निकासी के नियमों को सख़्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
.राज्य को अपने पहाड़ों और कस्बों की वहन क्षमता पर गहन अध्ययन और इसके पारिस्थितिकी तंत्र पर उच्च गुणवत्ता वाले डेटा की आवश्यकता है।
राज्य भले ही सामान्य वर्षा की श्रेणी में आ गया हो लेकिन अगर हम आंकड़ों पर नज़र डालेंगे तो सच्चाई थोड़ी अलग है। आंकड़ों के मुताबिक़ ज्यादातर बारिश की भरपाई ‘अधिक’ या ‘अत्यधिक’ बारिश के कारण हुई है।
मानसून में मौसम की चरम घटनायें हावी रही हैं।
कार्यक्रम में सम्मानित अतिथि प्रोफेसर दुर्गेश पंत, एन.डी.एम. ए से कुणाल सत्यार्थी, एसपीसीबी से एस0के.पटनायक, कपिल जोशी (अतिरिक्त पीसीसीएफ-र्प्यावरण), डॉ. कला चन्द सेन, निदेशक वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलोजी, डॉ. पूनम गुप्ता ( यूसीओएसटी) एवं डॉ. एस.के.ढाका (प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने अपने विचार साझा किये।
कार्यशाला का आयेजन होटल सरोवर, राजपुर रोड में किया गया।