नीलकंठ भगवान शिव ने हरिद्वार के पास यहां धारण किया था कालकूट हलाहल विष।  

धर्म: भगवान शिव का पूरा वर्ण गोरे रंग का बताया जाता है। जिसकी वजह से भगवान शंकर को ‘कर्पूर गौरं करुणावतारं’ कहते हैं। करूणावतार शिव का कंठ नीले रंग का है और भगवान शिव का कंठ विष पीने की वजह से नीला हुआ था। यही वजह है कि भगवान शिव-शंकर को नीलकंठ भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस स्थान पर भगवान शिव ने विष पिया था, वह जगह आज कहां और किस हाल में हैं। आइए हम आपको बताते है इस जगह के बारे में कुछ रोचल तथ्य।

देवासुर संग्राम के बाद समुद्र मंथन हुआ था। लेकिन जब समुद्र मंथन से कालकूट नामक हलाहल विष निकला, तो न सिर्फ असुर बल्कि देवता सहित हर कोई घबरा गया। सबका यह कहना था कि आखिर यह विष किसके पास जाएगा। तब भगवान शिव ने इस संसार के कल्याण के लिए कालकूट नामक हलाहल विष पीकर इसे अपने कंठ में धारण किया।

नीला पड़ा भगवान शिव का कंठ

विषपान करने की वजह से भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया है। बताया जाता है कि यहां पर 60 हजार साल तक भगवान शिव ने समाधि वाली अवस्था में रहकर विष की उष्णता को शांत किया था। शिवशंभू जिस वटवृक्ष के नीचे समाधि लेकर बैठे थे, उस जगह पर भगवान शिव का स्वयंभू लिंग विराजमान है। आज भी इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग पर नीला निशान देखा जा सकता है।

नीलकंठ मंदिर के समीप पार्वती जी का भी मंदिर

नीलकंठ मंदिर की नक्काशी बेहद खूबसूरत है। मनोहरी शिखर के तल पर समुद्र मंथन के नजारों को दिखाया गया है। वहीं मंदिर के गर्भगृह में एक बड़ी पेंटिंग में भगवान शंकर को विषपान करते हुए दिखाया गया है। नीलकंठ मंदिर से कुछ दूरी पर पहाड़ी पर भगवान शिव की पत्नी मां पार्वती का मंदिर बना है। मंदिर के पास से मधुमति व पंकजा दो नदियां बहती हैं। शिवभक्त इन नदियों में स्नान आदि करने के बाद मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

ऐसे पहुंचे नीलकंठ मंदिर

बता दें कि आप ट्रेन या बस से ऋषिकेष तक आराम से पहुंच सकते हैं। हवाई जहाज से भी देहरादून मौजूद एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं। एयरपोर्ट से ऋषिकेष की दूरी सिर्फ 18 किमी है। वही ऋषिकेश से 4 किमी दूर रामझूला तक पहुंचने के लिए ऑटो से जा सकते हैं। फिर रामझूला पुल को पारकर स्वार्गश्रम से होते हुए 12 किमी दूर मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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